ये बात तो अब किसी से छुपाई नहीं जा सकती कि उत्तराखंड पलायन की बहुत बड़ी मार झेल रहा है जिससे ग्रामीण इलाकों में अनेक प्रकार की समस्याएं दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। शहरों की ओर अग्रसर होते उत्तराखंड के लोग अपने गांव को वीरान बनाने पर तुले हुए हैं। बाकि आम लोगों की तो छोड़ो यहां के बड़े लोगों के गांव सबसे ज्यादा बदतर स्थिति में हैं।
विकास की बात तो दूर अब कोई भी बड़ा नेता या पलायन कर चुके लोग अपने गांव जाने तक की नहीं सोचते। ऐसे में उत्तराखंड में पलायन पर रोक लगाना भारी मुश्किल हो गया है। पलायन के बाद सबसे बड़ी परेशानी पेयजल, उचित सड़क मार्ग और स्वास्थ्य सुविधाओं का पर्याप्त ना होना है। जो कि गांव में बचे खुचे लोगों के मत्थे पड़ चुकी है।
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पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके तीरथ सिंह रावत का गांव सीरों भी बदहाल की स्तिथि में है। सतपुली बाजार से जुड़ा हुआ सीरों गांव में पर्याप्त पेयजल और सही सड़क मार्ग ना होना यहां के लोगों की सबसे बड़ी चिंता है। सीरों गांव के लिए सड़क मार्ग का डामरीकरण तो शुरू हो गया था लेकिन अफसोस की बात ये है कि सड़क केवल पांच किलोमीटर तक ही बन पाई और काम अधूरा छोड़ा गया।
हालांकि सीरोंं गांव में पलायन की मार अभी उतनी नहीं है लेकिन उत्तराखंड निर्माण के 21 साल बाद भी गांव में पेयजल की बहुत बड़ी समस्या है। पूर्व मुख्यमंत्री के गांव की इस प्रकार की हालत से ये साफ है कि योजनाएं तो सरकार द्वारा खूब बनाई लेकिन उन योजनाओं का अभी सही से उपयोग नहीं हो पाया। वहीं स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए सीरों गांव के लोग सतपुली और पौड़ी का सहारा लेते हैं।
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