वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali)

Suraj Rana
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Veer Chandra Singh Garhwali
Veer Chandra Singh Garhwali

परिचय वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali)

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) का जन्म 25 दिसंबर 1891 को उत्तराखंड के  गढ़वाल क्षेत्र रोणैसेर नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम जथली सिंह भंडारी था। भारत के इतिहास में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को पेशावर कांड (Peshawar Kand) के महानायक के रूप में आज भी याद किया जाता है।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali)  का पूरा नाम चंद्र सिंह भंडारी(Chandra Singh Bhandari) था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति सही ना होने की वजह से उनके पापा अनपढ़ थे। लेकिन चंद्र सिंह गढ़वाली ने अनपढ़ न रहने की ठानी और जैंसे तैसे करके शिक्षा प्राप्त की। इसी प्रकार की लग्न और मेहनत के बल पर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली 13 सितम्बर 1914 को गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) की ओर से सेना में भर्ती हो गए। 

अंग्रेजों के लिए लड़ी लड़ाईयां 

उन्हें सेना में भर्ती हुए 1 साल बाद ही उन्हें अन्य गढ़वाली सैनिकों के साथ 1915 में अंग्रेजों द्वारा फ्रांस भेजा गया। 6 महीने के बाद 1916 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) फ्रांस से वापस आ गए। उस समय पूरा विश्व प्रथम विश्व युद्ध (First World War) में लगा हुआ था। इसी दौरान चंद्र सिंह भंडारी ने मेसोपोटामिया के युद्ध में अंग्रेजो की ओर से भाग लिया, जिसमें अंग्रेजों को जीत मिली।

एक बार फिर 1918 में भी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) ने बगदाद की लड़ाई में अंग्रेजों की ओर से भाग लिया। प्रथम विश्व युद्ध अब अपनी समाप्ति पर था जिसके कारण अंग्रेजों ने सेना से कई सैनिकों को निकालने व कई सैनिकों की रैंक घटाने का निर्णय लिया। इसमें चंद्र सिंह भंडारी (वीर चंद्र सिंह गढ़वाली) का नाम भी शामिल था। 

इसी बात की निराशा के कारण उन्होंने सेना को छोड़ने का मन बना लिया था। लेकिन बड़े अधिकारियों को उनकी अहमियत पता थी इसलिए उन्होंने चंद्र सिंह भंडारी (Chandra Singh Bhandari) को समझाया कि जल्द ही उनका प्रमोशन किया जाएगा और साथ ही कुछ दिनों के लिए अवकाश दे दिया। 

इस बीच वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) की मुलाकात महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) से हुई। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित हुए। इसके बाद से उनके अंदर स्वदेश प्रेम की भावना जागृत हुई। 1920 में चंद्र सिंह गढ़वाली और उनकी बटालियन को बाजिरिस्तान भेजा गया। वहां से लौटने के बाद उनका प्रमोशन मेजर हवलदार के पद पर हो चुका था।

पेशावर कांड (Peshawar Kand)

Peshawar Kand
Peshawar Kand

1930 में स्वतंत्रता के लिए पूरे देश में आंदोलन जारी थे। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) अभी भी अंग्रेजों की सेना में भर्ती थे और उनकी ओर से युद्ध लड़ रहे थे। इन्हीं आंदोलनों को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 23 अप्रैल 1930 को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेजा। अंग्रेजों द्वारा हुक्म था की आंदोलन करने वाले आंदोलनकारियों पर हमला किया जाए। 

लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali)) ने निहत्थी जनता पर गोली चलाने से मना कर दिया। चंद्र सिंह गढ़वाली के इस महान फैसले ने गढ़वाल बटालियन को पेशावर कांड (Peshawar Kand) में एक ऊंचा दर्जा दिलाया। यही वो घटना थी जिसके बाद से चंद्र सिंह भंडारी को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का नाम दिया गया और इन्हें पेशावर कांड के नायक के रूप में जानने लगे।

अंग्रेजों की आज्ञा ना मानने से पेशावर कांड (Peshawar Kand) में शामिल सभी सैनिकों पर मुकदमा कसा गया। गढ़वाल बटालियन के सैनिकों की मृत्युदंड की सजा को 14 साल की कैद की सजा में बदल दिया गया। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) की सारी संपत्ति अंग्रेजों द्वारा जप्त कर ली गई और उनकी वर्दी को काट-काट कर अलग कर दिया।

1930 को वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) को 14 साल की कैद के लिए ऐबटाबाद जेल भेजा गया। वहां से इन्हें कई बार अलग अलग जेलों में स्थानांतरित किया जाता रहा। लेकिन बाद में इनकी सजा 14 साल से घटाकर 11 साल कर दिया गया और 26 सितंबर 1941 को जेल से रिहा कर दिया। परंतु इनका गढ़वाल में प्रवेश वर्जित था जिस वजह से इन्हें यहां वहां भटकना पड़ा। 

आजादी मिलने तक लड़ते रहे 

जिसके बाद वे गांधी जी के साथ चले गए। 8 अगस्त 1942 को इलाहाबाद में हुए भारत छोड़ो आन्दोलन में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) ने भी अपनी भागीदारी निभाई। जिसके बाद फिर से इन्हें 3 साल के लिए जेल जाना पड़ा। 1945 में जेल से रिहा होने के बाद 22 दिसंबर 1946 को कम्युनिस्टों की मदद से  चंद्र सिंह भंडारी (वीर चंद्र सिंह गढ़वाली) गढ़वाल में प्रवेश करने में सफल रहे। 

इसके बाद भी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) ने भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई। 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी के बाद भी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने देश के प्रति सरहानीय कार्य किए। एक लंबी बीमारी के चलते वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का 1 अक्टूबर 1979 को 88 साल की उम्र में निधन हो गया।

हम गर्व से कह सकते हैं की हम एक ऐसे गढ़ में जन्में हैं जहां वीर चंद्र सिंह गढ़वाली (Veer Chandra Singh Garhwali) जैंसे वीर सपूत भारत माता की रक्षा करने के लिए पैदा हुए हैं। जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भारत माता की रक्षा के लिए न्योछावर कर दी। जय हिन्द जय भारत।

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