केंद्र सरकार ने लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष की मांग को स्वीकारा है। अब केंद्र सरकार द्वारा ये निर्णय क्यों लिया गया ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है। आखिर लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष करने से उनको क्या क्या लाभ होंगे आइए जानते हैं।
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करने की मांग को स्वीकारा गया है। इस निर्णय के बाद से महिलाओं को बहुत से लाभ होंगे खासकर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में कमी, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में कमी और बाल विवाह में कमी जैंसे बड़े लाभ होंगे।
स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों से मिलेगी राहत
महिलाओं के विवाह की उम्र 21 वर्ष न्यूनतम करने के पीछे की वजह जेंडर न्यूट्रेलिटी भी है। कम उम्र की बालिकाओं या अवयस्क बालिकाओं का विवाह कराने से स्वास्थ्य संबंधी कई प्रकार की बिमारियां हो सकती हैं। कम उम्र में विवाह से गर्भाधान में महिलाओं को कई समस्याएं आती हैं उनके शरीर का विकास ठीक से नहीं हुआ होता ऐसे में उनके स्वास्थ्य और आने वाली संतान पर इसका असर बुरा पड़ता है।
एक विकसित उम्र से पहले ही अगर महिलाएं मां बनती हैं तो बच्चे और मां के पोषण में लगातार कमी देखने को मिलती है। इसी कारण से शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में वृद्धि होती रहती है। 21 वर्ष तक महिलाओं के शरीर का विकास पूर्ण रूप से हो जाता है जिसको ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा लिया गया ये निर्णय सरहाहनीय है।
बाल विवाह की दर होगी कम
भारत एक ऐसा देश है जहां बाल विवाह की प्रथा का प्रचलन पहले से ही चलता आ रहा है यहां तक की आज के दौर में भी जहां लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। भारत में बाल विवाह या 18 वर्ष की उम्र में बेटियों को विदा करना ज्यादातर पिछड़े वर्ग के लोगों में देखने को मिलती है क्योंकि वो आर्थिक स्थिति से सक्षम नहीं हैं।
बाल विवाह की प्रथा में केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय से काफी हद तक राहत मिलेगी। राष्ट्रीय परिवार सर्वे की मानें तो भारत में बाल विवाह की दर 2016 में 23 प्रतिशत थी। वहीं 2020 में ये आंकड़ा घटकर 23 प्रतिशत तक पहुंचा। 21 वर्ष लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु करने से बाल विवाह को काफी हद तक कम किया जा सकेगा और गरीब व पिछड़े वर्ग के लोगों के शोषण कम हो सकेंगे।
वहीं केंद्र सरकार को अलग अलग कानूनों को बदलने की आवश्यकता भी है। जहां हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में महिलाओं की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुषों की न्यूनतम आयु 21 वर्ष की गई थी। वहीं दूसरी ओर इस्लाम में यौवनारंभ शुरु होते ही छोटी बालिकाओं के विवाह कर दिए जाते हैं जबकि वे तब अवयस्क रहती हैं।