तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) - जानिए गढ़वाल की लक्ष्मीबाई की कहानी।

Suraj Rana
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तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)
Tilu Rauteli
तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) 

उत्तराखंड को अगर वीरों और वीरांगनाओं की भूमि कहा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा। ऐसी ही एक वीरांगना तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) की कहानी है। जिन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई (Lakshmi Bai) के नाम से जानते हैं। 

तीलू रैतेली ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों को दातों तले चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। मात्र 15 साल की उम्र में युद्ध में कूदने वाली वीरांगना तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) को आज भी उत्तराखण्ड की झांसी की रानी और गढ़वाल की लक्ष्मीबाई के नाम से याद किया जाता है।

परिचय

उत्तराखंड की वीरांगना (adventuress of Uttarakhand) तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) का जन्म 1663 में गुराड नामक गांव में जिला पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। गढ़वाल के लोग हर साल 8 अगस्त को तीलू रौतेली की जयंती के रूप में मनाते हैं। इस दिवस पर उत्तरखंड सरकार द्वारा खास कार्यक्रम आयोजित किया जाता है|

जिसमें उत्तराखंड की उन महिलाओं को तीलू रौतेली पुरुष्कार (Tilu Rauteli Award) दिया जाता है जो उत्तराखंड के विकास के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। तीलू रौतेली के पिता का नाम भूप सिंह रावत (Bhup Singh Rawat) व मां का नाम मैनावती देवी (Menawati Devi) था। तीलू रौतेली के दो भाई भगतू और पथवा थे। 

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) के पिता भूप सिंह (Bhup Singh) भी एक वीर और साहसी योद्धा थे। इसी वजह से गुराड गांव की थोकदारी की जिम्मेदारी गढ़वाल के नरेश मानशाह ने इन्हें सौंपी थी, और सेना में भी शामिल किया हुआ था। तीलू रौतेली ने अपना बचपन बीरोंखाल के कांडा मल्ला गांव में गुजारा इसी वजह से आज भी कांडा मल्ला गांव में तीलू रौतेली के नाम का कोथिग आयोजित होता है। 

तीलू रौतेली का जीवनकाल (Life of Tilu Rauteli)

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)

जब तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) मात्र 15 साल की थी तो उनकी सगाई मोदाडसयु पट्टी के इड़ा गांव में सिपाही भवानी सिंह नेगी (Bhawani Singh Negi) से तय हो गई थी। ये वो समय था जब गढ़वाल नरेश और कत्यूरों के बीच युद्ध छीड़ना शुरू हुआ था। कत्यूर के राजा लगातार गढ़वाल पर हमले कर रहा था। कत्युरों ने अपनी सेना को ओर मजबूत कर गढ़वाल पर जोरदार हमला बोला। 

खेरागढ़ में दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ जिसमें राजा मानशाह और उनकी सेना ने कत्यूरों का डटकर सामना किया लेकिन अंत में उन्हें हार के अलावा कुछ नसीब नहीं हुआ। राजा मानशाह को रणभूमि छोड़कर भागना पड़ा और उन्होंने चोंदकोट गड़ी में जाकर शरण ली। जिस कारण से भूप सिंह और उनके दोनों बेटों भग्तू और पथवा को युद्ध संभालना पड़ा। 

लेकिन भूप सिंह भी युद्ध में मारे गए। युद्ध अभी भी अलग अलग जगहों पर आगे चलता रहा। भूप सिंह की मृत्यु के बाद उनके दोनों बेटों, पुत्री तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) और तिलू के मंगेतर भवानी सिंह नेगी (Bhawani Singh Negi) ने युद्ध की कमान संभाली। लेकिन कांडा में हो रहे युद्ध के दौरान तीनों मारे गए। तीलू रौतेली को अपने भाइयों, अपने पिता और अपने मंगेतर के मारे जाने का बहुत दुख हुआ वे अंदर से टूट चुकी थी।

मां की फटकार ने जगाई प्रतिशोध की भावना

कांडा युद्ध अब समाप्त हो चुका था जिसके बाद कांडा में कोथिग का आयोजन हुआ। इस कोथिग में तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) के परिवार की उपस्थिति हर साल रहती थी। तीलू रौतेली ने मां से कोथिग में जाने की जिद्द की। उनकी मां को तीलू की ये जिद्द पसंद नहीं आई और आग बबूला होकर तीलू को डांटने लगी। 

उन्होंने गुस्से में तीलू को तीखे शब्दों में सुनाया- "तेरे दो भाई, तेरे पिता और तेरे मंगेतर को मौत के घाट उतारा गया और तुझे मेले में जाने की जिद्द है। ये बात तू भूल गई क्या, अरे तुझे करना ही है तो अपने भाइयों और पिता की मौत का प्रतिशोध ले।" जिसे सुन तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) के अंदर प्रतिशोध लेने की भावना जाग उठी उन्होंने कत्यूरों से बदला लेने की ठान ली थी। 

तीलू रौतेली का रणभूमि सफर (Battlefield journey of Tilu Rauteli)

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli)

मां की फटकार ने अब मात्र 15 साल की बालिका तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) को अंदर से मजबूत कर दिया था। उन्होंने बेल्लू और रक्की नामक अपनी दो सहेलियों के साथ मिलकर एक नई सेना बनाई क्योंकि पुरानी बिखर चुकी थी। कत्यूरों से बदला लेने का उद्घोष कर तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) सेना के साथ खौरागढ़ पहुंची। जहां से उन्होंने कत्यूरों को भागकर अपनी पहली विजय प्राप्त की। 

उसके बाद सेना को लेकर वे चौखुटिया पहुंची जिसे गढ़ राज्य की अंतिम सीमा घोषित कर दी, और देघाट लौट गई। देघाट के बाद कलिंका खाल (Kalinka Khal) पहुंची और वहां की स्थानीय देवी कलिंका की पूजा की। अब तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) जहां भी युद्ध लड़ने जाती तो वहा की स्थानीय देवी की पूजा जरूर करती। तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) ने लागतार 7 साल तक कत्यूरों के साथ युद्ध लड़ा और प्रतिशोध लेती रही। 

उन्होंने कत्यूरों के हौसले पस्त कर दिए थे। तीलू रौतेली ने सारे युद्धों में कत्यूरों के ऊपर जीत हासिल की। बाद में जब वे अपने गांव गुराड वापस लौटी। जहां नहाते समय कत्यूर के सैनिक रामू राजवाड़ ने धोखे से तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) की हत्या कर दी। इस प्रकार से उत्तराखंड की एक वीरांगना के जीवन का अंत हुआ।

तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) की याद में आज भी कांडा और बीरोंखाल गांव कोथिग का आयोजन किया जाता है। जिसमें तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) की प्रतिमा की पूजा की जाती है। साथ हर साल 8 अगस्त को उत्तराखंड सरकार द्वारा तीलू रौतेली जयंती मनाई जाती है और एक खास आयोजन किया जाता है।

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