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| Madho Singh Bhandari |
माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari)
परिचय
वो कहते हैं ना अगर आपके अंदर किसी चीज को करने की चाह है तो आपको दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत भी नहीं रोक सकती। ऐसा एक उदाहरण है
माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) जी का। जिन्होंने पहाड़ का सीना चीरकर सिंचाई के पानी के लिए गुल का निर्माण किया।
माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) जी का जन्म कब हुआ इसके बारे में किसी को सटीक जानकारी नहीं है लेकिन माना जाता है कि उनका जन्म 1595 को श्रीनगर गढ़वाल के पास कीर्तिनगर देवप्रयाग के मलेथा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कालो सिंह भंडारी (Kalo Singh Bhandari) था जो की एक वीर योद्धा थे।
वहां के गढ़ नरेश ने कालो सिंह भंडारी (Kalo Singh Bhandari) की वीरता को देखा और प्रसन्न होकर उन्हें बहुत सारी जमीन उपहार के रूप में दी। उनकी छवि पुत्र माधो सिंह भंडारी पर भी झलकी जिससे वो भी बचपन से ही साहसिक कार्यों में रुचि लेने लगे। बचपन में ही माधो सिंह भंडारी राजसेना में शामिल हो गए थे।
माधो सिंह भंडारी भी अपने पिता की तरह वीर और बुद्धिमान थे जिस कारण उन्हें बहुत जल्दी ही सफलता प्राप्त होने लगी और दरबार में एक महत्वपूर्ण पद हासिल कर लिया। एक वीर योद्धा होने के नाते माधो सिंह भंडारी ने सेनापति के रूप में कई लड़ाईयां लड़ी। दापाघाट का और मंदिर गढ़ का किला जिस पर तिब्बत के हमलावरों का कब्जा था, उन्हें जितने में माधो सिंह भंडारी ने सेना का सहयोग दिया।
मलेथा की गुल का निर्माण (Maletha Ki Gul)
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| Maletha Ki Gul |
आज से लगभग 400 साल पहले बहुत समय से बारिश न होने के कारण भयंकर अकाल की स्तिथि आ गई थी। लोग पानी और उससे पूरी होने वाली जरूरतों के लिए तरस गए थे। जिसके बाद से लोगों की सारी फसलें खेत सब कुछ सुखा पड़ गया था। लेकिन मलेथा गांव का उद्धार करने के लिए वहां माधो सिंह भंडारी ((Madho Singh Bhandari) नामक वीर था।
मलेथा गांव से ढाई किलोमीटर दूर चंद्रमा नदी बहती थी जिसके बारे में माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) ने गांव की पंचायत के सामने रखी। उन्होंने चंद्रमा नदी से कूल (नहर) निकालने की बात कही, और सबने हां कर दी। सब खुशी से झूम रहे थे कि अब नहर के माध्यम से पानी आएगा और हम सिंचाई करके अन्न उगा पाएंगे। सारे काम की देखरेख की जिम्मेदारी माधो सिंह भंडारी की थी।
लेकिन गांव वालों के लिए दुर्भाग्य की बात थी कि चंद्रमा नदी का पानी उनकी बनाई नहर पर आया ही नहीं। गांव के लोगों द्वारा कई उपाय किए गए स्थानीय देवी देवताओं को भी पूजा गया, बकरों की बली दी गई, लेकिन फिर भी निर्णय नहीं निकला। सारे गांव वालों के चेहरे पर दुख और निराशा छा गई थी। कभी वे पंडित के पास गए तो कभी देवता नचाए गए लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगी।
एक रात को माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) को एक बुरा सपना आया, सपने में उन्होंने देखा कि नहर में पानी तब आयेगा जब वे अपने इकलौते बेटे गजेसिंह (Gaje Singh) की बली देंगे। सपने के बाद से माधो सिंह भंडारी दुविधा में पड़ गए, एक ओर गांव वाले और खेतों की हरियाली और दूसरी ओर उनकी इकलौती संतान। जब माधो सिंह भंडारी अपनी पत्नी को ये बात बता रहे थे तो उनके पुत्र गजे सिंह ने उनकी बात सुन ली।
उसने सोच लिया था की मेरे जीने से अगर गांव बर्बाद हो गया तो मेरा जीना व्यर्थ है। जिसके बाद उसने अपने पापा से अपनी बलि देने की बात कही। माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) ने थोड़ी देर सोच विचार किया और फिर निर्णय लिया अगर इसी मैं गांव का भला है तो वो बलि देने के लिए तैयार हैं। ये बात आग की तरह गांव में फैल गई। जिसे सुन सब आश्चर्यचकित रह गए।
फिर भी गजेसिंह (Gaje Singh) की बलि दी गई और नहर में पानी आना शुरू हो गया जोर की बारिश हुई और खेतों में सिंचाई होने लगी। पूरा गढ़वाल माधो सिंह और गजेसिंह की वीर गाथा से परिचित होने लगा और उन्हें सरहाना करने लगे। नहर लगभग 225 फीट लंबी 3 फीट ऊंची और 3 फीट चौड़ी है, जो आज भी मलेथा और आस पास के गांवों के लिए सिंचाई का काम कर रही है।
वाकई माधो सिंह भंडारी (Madho Singh Bhandari) एक गढ़वाल के एक वीर योद्धा थे जिन्होंने गांव वालों के लिए अपने इकलौते पुत्र की बलि दे दी। माधो सिंह भंडारी का निधन 50 साल की उम्र में 1645 में हुआ माना जाता है। माधो सिंह भंडारी जी के इस वीर पराक्रम को की छवि आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है।