उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सूखे प्राकृतिक जलस्रोत, भारी मात्रा में आई गिरावट, जिम्मेदार कौन?

Suraj Rana
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उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सूखे प्राकृतिक जलस्रोत

उत्तराखंड में पलायन के अनेकों परिणाम भुगतने पड़े हैं गलियां वीरान तो गांव सुनसान हो गए। खेत खलियान और लोगों के घर बंजर पड़े हुए हैं। जिसके चलते अब जलस्रोतों के सूखने के मामले में वृद्धि आई है। सर्वे के हिसाब से उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से जलस्रोतों से पानी की निकासी को लेकर 5 से 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। 

राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान ने पिछले 3 सालों में 1200 से अधिक जलस्रोतों का अध्ययन किया। चूंकि पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल की पूर्ति के लिए जलस्रोत ही मुख्य होते हैं। लेकिन अब इन जनस्रोतों में पानी की कमी होने लगी है जिसके कारण भविष्य में पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल की समस्या होने वाली है। साथ ही पानी की कमी के साथ पानी अशुद्ध भी हुआ है। जिससे कई प्रकार की भारी उत्त्पन होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। 

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कई जलस्रोत तो पूरी तरह से सूख चुके हैं ऐसे में पूरी तरह सूखे इन जलस्रोतों को फिर से जीवित करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा कई योजनाएं बनाई जा रही हैं। प्राकृतिक जलस्रोतों का सूखना इस ओर इशारा करता है कि भविष्य में गंभीर पेयजल संकट आ सकता है। जगह जगह अनिमियित रूप से सड़क निर्माण, पेड़ों की कटाई, और सही देख रेख ना होना ही इन जलस्रोतों के सूखने का सबसे बड़ा कारण है। 

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में सूखे प्राकृतिक जलस्रोत

प्राकृतिक जलस्रोतों को सीमेंट से नए रूप में ढालना भी इनके सूखने की मुख्य वजह है। पहाड़ों में सड़क निर्माण के दौरान बड़े बड़े पहाड़ों और पत्थरों को काटने के लिए कारतूस का इस्तेमाल किया जाता है। जिसका बुरा प्रभाव प्रकृति के ऊपर पड़ता है। अभी भी अगर पहाड़ों में पेयजल की समस्या को दूर करना है तो हमें खुद सुध लेने की आवश्यकता है। 

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